पंचगंगा घाट से आदि केशव घाट
पंचगंगा घाट काशी के पांच प्रमुख प्राचीनत्म तीर्थो (घाटों) तथा वर्तमान में सर्वाधिक जीवन्त घाटों में एक है। प्राचीनकाल से ही इसकी मान्यता काशी के दूसरे प्रमुख (आदिकेशव के पश्चात) विष्णु क्षेत्र के रूप में रही है। घाट पर बिन्दुमाधव (विष्णु) मंदिर होने से इसका प्राचीन नाम बिन्दुमाधव घाट था। घाट के सामने गंगा में स्थित तीर्थो में पंचनद तीर्थ प्रमुख है। 17वीं शती ई. में औरगंजेब द्वारा घाट का प्रमुख मंदिर (बिन्दुमाधव) नष्ट किये जाने और उसे मस्जिद का रूप दे दिये जाने के पश्चात घाट का नाम परिवर्तित होकर पंचनद या पंचगंगा हो गया। ऐसी मान्यता है कि घाट स्थित बिन्दुमाधव मंदिर का निर्माण 17वीं शती ई. के प्रारम्भ में आमेर (राजस्थान) के राजा मानसिंह ने कराया था। बिन्दुमाधवघाट का उल्लेख गीर्वाणपदमंजरी में भी मिलता है। पंचनद या पंचगंगा के सन्दर्भ में मान्यता है, कि गंगा में अदृश्य रूप से चार अन्य नदियों-यमुना, सरस्वती, किरणा एवं धूतपापा का संगमस्थल है जिसके कारण इसे पंचगंगा या पंचनद तीर्थ कहा जाता है। कार्तिक माह के शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक घाट पर स्नानार्थियों की सर्वाधिक भीड़ रहता है। घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा की रात लोग तेल का दीप जलाकर घाटों को प्रकाशमान करते हैं, जिसे देवदीपमालिका पर्व के रूप में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। घाट स्थित वर्तमान बिन्दुमाधव मंदिर का निर्माण 18वीं शती ई. के मध्य पंत प्रतिनिधि भावन राव, महराजा औध (सतारा), महाराष्ट्र ने कराया था। गंगातट पर स्थित रामानन्द मठ 14 वी-ं15-वीं शती ई. में वैष्णव संत रामानन्द का निवास स्थान था। मठ के समीप अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित (18वीं शती ई. का उत्तरार्द्ध) दीप हजारा स्तम्भ है जिसमें कार्तिक पूर्णिमा को दीप प्रज्वलित किया जाता है। घाट पर आलमगीर मस्जिद है। मस्जिद के दक्षिणी भाग में स्थित भवन को कंगन वाली हवेली के नाम से जाना जाता है, जिसका निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने राजस्थानी शैली में करवाया था।