वाराणसी : एडवेंचर और वाटर स्पोर्ट्स का हब (असि घाट)
वाराणसी न केवल मंदिरों और घाटों का शहर है बल्कि यह शहर रोमांच और जल क्रीड़ा प्रेमियों को भी आकर्षित करता है। ये गतिविधियाँ जैसे: स्पीड बोट, पैरा मोटर, बम्पी राइड, डेजर्ट बाइक, जेट्सकी, पैरा सेलिंग, बनाना राइड और कई अन्य ने गतिविधयों व वाराणसी मे पर्यटकों के गंगा दर्शन को अधिक रोचक बना दिया है।
बनारस दर्शन : क्रूज बोट के साथ।
यदि आप वाराणसी आते हैं और नाव की सवारी नहीं करते हैं, तो वाराणसी दर्शन अधूरा रहता है। आम नावों के साथ क्रूज बोट घटो की सुंदरता निहार सकते है।
गंगा महोत्सव
यह पांच दिवसीय उत्सव, अपने सभी अनुष्ठानों, रीति-रिवाजों, पारंपरिक संगीत एवं नृत्य प्रस्तुति के माध्यम से वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत को चित्रित करता है।
देव दीपावली
गंगा नदी के किनारे पारंपरिक दीपावली के पंद्रह दिन के पश्चात प्रत्येक वर्ष इस त्यौहार “देव दीपावली” को मनाया जाता है। प्रकाश, मंत्रोच्चार और प्रार्थनाओं व आरतियों से काशी के समस्त घाट जीवंत हो उठते हैं। माँ गंगा अनगिनत तैरते दीपों से जगमगाती हैं। सभी के लिए यह एक भव्य अनुभव होता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो समस्त प्रजा व सभी देवी-देवता मिलकर दीपावली मना रहे हैं और गंगा की धारा स्वर्ग से भूमि को जोड़ने वाले पवित्र मार्ग की तरह प्रतीत होती है। त्यौहार की भव्यता व लोगों की भावनाएं व समस्त जनमानस के उल्लास का अनुभव इस त्यौहार के दृश्य को अनूठा बनाता है।
यही कारण है कि पूरे देश और दुनिया भर से लाखों लोग वाराणसी की पवित्र भूमि पर इस क्षण एकत्रित होते हैं और देवताओं व मनुष्यों के इस आनंदोत्सव का आनंद लेते हैं। घाटों की सीढ़ियों को जगमगाते दीयों से सजाया जाता है और गंगा की जगमगाहट को सैकड़ों नावों की रोशनी के साथ-साथ झिलमिलाते दीपों के साथ देखा जा सकता है।
सारनाथ
काशी के पौराणिक शहर से लगभग 10 किमी दूर स्थित, प्राचीन काल से ऋषिपाटन और मृगदव नाम से भी प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र महात्मा बुद्ध और जैन तीर्थंकर श्रेयांस नाथ जैसे महान पौराणिक कथाओं के कार्यस्थल होने के लिए भी प्रसिद्ध है। समय के साथ, मौर्य वंश, गुप्त वंश आदि जैसे विभिन्न विकृत राजवंशों में प्रमुख राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक गतिविधियों जैसे स्तूप, विहार, अशोक स्तंभ आदि के विभिन्न रूप शामिल थे।
सारनाथ की इसी लोकप्रियता को देखते हुए मौर्य शासक अशोक द्वारा निर्मित धमेख स्तूप पर ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
- सिर्फ 10 किमी दूर है सारनाथ, जो बौद्ध धर्मावलंबियों का एक बड़ा तीर्थ है। ऐसा माना जाता है कि बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश यहीं सारनाथ में दिया था। इसे महाधर्म चक्र परिवर्तन के नाम से जाना जाता है।
- धमेक स्तूप और अन्य का निर्माण यह संकेत है कि उस समय इसकी क्या अहमियत रही होगी।
- चौखंडी स्तूप वह जगह है जहां पहली बार सारनाथ आए भगवान बुद्ध की अपने पहले पांच शिष्यों से मुलाकात हुई थी।
- यह जगह धर्मराजिका स्तूप और मूलगंध कुटी विहार जैसी पुरातात्विक महत्व की संरचनाओं के लिहाज से भी खासी अहमियत रखती है।
- सम्राट अशोक ने 273-232 ईसापूर्व यहां बौद्ध संघ के प्रतीक स्वरूप विशालकाय स्तंभ स्थापित किया था। इसके ऊपर स्थापित सिंह आज भारत देश का राष्ट्रीय प्रतीक है।
विंध्यांचल
- सुदीर्घ विन्ध्य पर्वत श्रृंखला का सानिध्य प्राप्त यह क्षेत्र ऐतिहासिक किलों-भवनों भित्ति चित्र कलाओं, शैलाश्रयों, जल प्रपात के रूप में प्रकृति सौन्दर्य प्राप्त है।
- इसकी गोद में माँ विध्यवासिनी देवी मंदिर के साथ अष्टभुजा व कालीखोह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है।
- विन्ध्यवासिनी मंदिर, अष्टभुजा मंदिर व कालीखोह मंदिर की त्रिकोण परिक्रमा का विधान है।
- बासंतिक व शारदीय नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं का आवगमन अधिक होता है।
- इसके अतिरिक्त बूढ़ेनाथ मंदिर तारकेश्वर मंदिर, रामेश्वर महादेव मंदिर, तारादेवी मंदिर, वामन देवी मंदिर, बदेवरानाथ, शिवधाम खैरा शिवधाम, कंतित शरीफ आदि दर्शनीय स्थल है।
सोनभद्र
- सोनभद्र अपनी विशाल संस्कृति, इतिहास, प्रकृति, खनिज, समृद्ध वनस्पति जीवों, रॉक नक्काशी, रॉक पेंटिंग आदि के लिए जाना जाता है। ये सोनभद्र की विशेषताएं हैं।
- इस क्षेत्र में पर्वतारोहण, ट्रेकिंग, बंजी जंपिंग, रिवर राफ्टिंग आदि साहसिक गतिविधियों की काफी संभावनाएं हैं
- विजय गढ़ किला, अगोरी गढ़ किला, शिव द्वार, मुक्खा फॉल, महुआरिया कैमूर वन्यजीव अभयारण्य, कौवाखोह रॉक शेल्टर, लेखनिया रॉक शेल्टर, पंचमुखी हिल रॉक शेल्टर रिहंद बांध, सोन इको पॉइंट सोनभद्र के प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं।
चुनार
- वाराणसी से लगभग 40 किमी0 एवं मीरजापुर से 35 किमी0 की दूरी पर गंगा नदी के किनारे अवस्थित चुनार का नाम साहित्य में चरणाद्रि, नैनागढ़ आदि नामों से उल्लिखित है।
- यहां स्थित किले के निर्माण विषय में उल्लेख प्राप्त होता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि के लिए किले का निर्माण करवाया था।
- इसके अतिरिक्त यहां राजा भतृहरि की समाधि, सिद्धनाथ की दरी, दुर्गाखोह आदि अन्य पर्यटन गंतव्य है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग काशी में स्थित है। काशी नगरी के उत्तर की तरफ ओंकारखंड, दक्षिण में केदारखंड और बीच में विश्वेश्वरखंड है। प्रसिद्ध विश्वनाथ- ज्योतिर्लिंग इसी खंड में स्थित है। शिवपुराण में प्राप्त विवरण के अनुसार श्री काशी विश्वनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में मान्यता प्राप्त है।
मंदिर को विभिन्न आक्रान्ताओं द्वारा ध्वस्त करने का विवरण प्राप्त होता है। मंदिर में पांच प्रहर आरती संपादित होती है। मंदिर दर्शन आदि से संबंधित सभी सुविधाओं हेतु मंदिर की वेबसाइट shrikashivishwanath.org से सहायता प्राप्त की जाती है। मंदिर प्रशासन द्वारा लाइव दर्शन की व्यवस्था भी की गयी है।
मनमंदिर वेधशाला और वर्चुअल एक्स्पीरीयेंशियल म्यूजियम (आभासी प्रायोगिक संग्रहालय)
यह वेधशाला जयपुर के राजा मान सिंह द्वारा दशाश्वमेध घाट के पास मनमंदिर घाट पर बनाई गई थी जिसमें उस समय की कॉल काउंट जानने के लिए उपकरणों को देखा जा सकता है।
वर्चुअल एक्स्पीरीयेंस आधुनिक और परिष्कृत वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से वाराणसी के विभिन्न पहलुओं, मूर्त और अमूर्त की झलक दिखाता है। वीईएम का दौरा एक आगंतुक के लिए एक अनूठा अनुभव होगा जहां वे वाराणसी के पवित्र घाट, शास्त्रीय संगीत, साड़ी की बुनाई, लेखक/लेखक, राम लीला, स्मारकों, संकरी गलियों और पान की दुकान आदि के 3 डी दृश्य का अनुभव करेंगे। गंगा के धरती पर अवतरण की कहानी भी दर्शकों को बेहद दिलचस्प तरीके से दिखाई जाती है।