• वाराणसी-सारनाथ

वाराणसी-सारनाथ

काशी विश्वनाथ मंदिर
सारनाथ

वाराणसी उन प्राचीन शहरों में है, जिसका ह्रदय समृद्ध विरासत समेटे हुए आधुनिकता के साये मे धड़क रहा है। गंगा किनारे यह शहर हिंदुओं, बौद्ध और जैन समाज के लिए विशेष महत्व रखता है।

  • क्षेत्रफल: 73.89 वर्ग किलोमीटर
  • जनसंख्या : 3,676,841 (As per 2011 census)
  • ऊंचाई: 80.71 मीटर (समुद्र तल के ऊपर)
  • तापमान: ग्रीष्मकालीन 32º C 43º C; शीतकालीन 5º C - 15.5º C
  • उपयुक्त समय: अक्टूबर-मार्च
  • गर्मी में पहनावा: सूती वस्त्र
  • जाड़े में पहनावा: ऊनी वस्त्र
  • भाषा: हिन्दी, अंग्रेजी
  • वर्षा: 111 से.मी. वार्षिक (लगभग)

लेन्स के माध्यम से जानें
वाराणसी सारनाथ को

भव्य बनारस

जानिए बनारस के ऐतिहासिक घाटों को, पवित्र गंगा को, बनारस की गलियों को और खाइए शाही पकवान को, लुत्फ उठाइए मशहूर बनारसी पान का, जानिए पवित्र सारनाथ की काहनी को, सुनिए बनारस की आरती और दीजिए मन को शांती और जानिए बनारस की असली संस्कृति को।

उत्तर प्रदेश आएं

वाराणसी के बारे में

इस शहर की यात्रा का अनुभव आपको भीतर तक बदल कर रख देगा।

पंचक्रोशी स्वरूप वाली काशी की रचना के विषय में शिवपुराण में उल्लेख प्राप्त होता है कि अपने अद्वैतभाव में रमने वाले उस अद्वैत परमेश्वर को दूसरा रूप वाला होने की इच्छा हुई। वे स्त्री तथा पुरूष के भेद से दो रूपों में हो गये। उन दोनों द्वारा प्रकृति तथा पुरूष भी निर्मित किये गये । पुनः निर्गुण परमात्मा द्वारा उनके लिए आकाशवाणी हुई तुम दोनों तप करों। उसी से उत्तम सृष्टि होगी।

प्रकृति तथा पुरूष के यह पूछने पर कि तप का कोई स्थान नहीं है, फिर हम आपकी आज्ञा से कहाँ तप करें। तब निर्गुण शिव ने अंतरिक्ष में स्थित, सभी सामग्रियों से समन्वित संपूर्ण तेजों का सारभूत, पंचक्रोश परिणाम वाला एक शुभ तथा सुंदर नगर बनाया और उसे पुरूष के समीप भेज दिया। यही पंचक्रोशी शिव नगरी काशी कही गयी है।

शिव को वाराणसी बड़ी प्यारी है, यह उन्हे आनंद देती है। अतः यह आनंदवन है।

काशी शब्द काश् (आर्थत् चमकना) से बना है। स्कन्द पुराण में आया है कि काशी इसलिए प्रसिद्ध हुई कि यह निर्वाण के मार्ग से प्रकाशन फेकती है। या इसलिये कि यहां देव शिव भासमान है।

वाराणसी की व्युत्पत्ति कुछ पुराणें ने इस प्रकार की है, कि यह वरणा एवं असि नामक दो धाराओं के बीच में हैं, जो क्रम से इसको उत्तरी एवं दक्षिणी सीमाएँ बनाती है।

अन्य पुराणों के मतानुसार इस पवित्र स्थल का नाम अविमुक्त इसलिये पड़ा कि शिव ने इसे कभी नही व्यक्त किया या छोड़ा।

कुछ कारणों से यह श्मशान या महाश्मशान भी कही जाती है। ऐसा लोगों का विश्वास रहा है कि काशी लोगों को संसार से मुक्ति देती है।

इस प्रकार शिव का आनंद कानन, काशी फिर अविमुक्त नामों से विभूषित काशी और महाश्मशान, अब वाराणसी नामो से जगत प्रसिद्ध काशी अपनी पुरातन सुंदरता के लिए हुए आधुनिक नये कलेवरो से संवर कर पूरे विश्व को अपने प्रकाश से आलोकित कर अपने आंगन मे प्रतिदिन लाखों पर्यटकों को बुलाती है।

आर्क के अलावा यह भी देखें

वाराणसी : एडवेंचर और वाटर स्पोर्ट्स का हब (असि घाट)

वाराणसी न केवल मंदिरों और घाटों का शहर है बल्कि यह शहर रोमांच और जल क्रीड़ा प्रेमियों को भी आकर्षित करता है। ये गतिविधियाँ जैसे: स्पीड बोट, पैरा मोटर, बम्पी राइड, डेजर्ट बाइक, जेट्सकी, पैरा सेलिंग, बनाना राइड और कई अन्य ने गतिविधयों व वाराणसी मे पर्यटकों के गंगा दर्शन को अधिक रोचक बना दिया है।

बनारस दर्शन : क्रूज बोट के साथ।

यदि आप वाराणसी आते हैं और नाव की सवारी नहीं करते हैं, तो वाराणसी दर्शन अधूरा रहता है। आम नावों के साथ क्रूज बोट घटो की सुंदरता निहार सकते है।

गंगा महोत्सव

यह पांच दिवसीय उत्सव, अपने सभी अनुष्ठानों, रीति-रिवाजों, पारंपरिक संगीत एवं नृत्य प्रस्तुति के माध्यम से वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत को चित्रित करता है।

देव दीपावली

गंगा नदी के किनारे पारंपरिक दीपावली के पंद्रह दिन के पश्चात प्रत्येक वर्ष इस त्यौहार “देव दीपावली” को मनाया जाता है। प्रकाश, मंत्रोच्चार और प्रार्थनाओं व आरतियों से काशी के समस्त घाट जीवंत हो उठते हैं। माँ गंगा अनगिनत तैरते दीपों से जगमगाती हैं। सभी के लिए यह एक भव्य अनुभव होता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो समस्त प्रजा व सभी देवी-देवता मिलकर दीपावली मना रहे हैं और गंगा की धारा स्वर्ग से भूमि को जोड़ने वाले पवित्र मार्ग की तरह प्रतीत होती है। त्यौहार की भव्यता व लोगों की भावनाएं व समस्त जनमानस के उल्लास का अनुभव इस त्यौहार के दृश्य को अनूठा बनाता है।

यही कारण है कि पूरे देश और दुनिया भर से लाखों लोग वाराणसी की पवित्र भूमि पर इस क्षण एकत्रित होते हैं और देवताओं व मनुष्यों के इस आनंदोत्सव का आनंद लेते हैं। घाटों की सीढ़ियों को जगमगाते दीयों से सजाया जाता है और गंगा की जगमगाहट को सैकड़ों नावों की रोशनी के साथ-साथ झिलमिलाते दीपों के साथ देखा जा सकता है।

सारनाथ

काशी के पौराणिक शहर से लगभग 10 किमी दूर स्थित, प्राचीन काल से ऋषिपाटन और मृगदव नाम से भी प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र महात्मा बुद्ध और जैन तीर्थंकर श्रेयांस नाथ जैसे महान पौराणिक कथाओं के कार्यस्थल होने के लिए भी प्रसिद्ध है। समय के साथ, मौर्य वंश, गुप्त वंश आदि जैसे विभिन्न विकृत राजवंशों में प्रमुख राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक गतिविधियों जैसे स्तूप, विहार, अशोक स्तंभ आदि के विभिन्न रूप शामिल थे।

सारनाथ की इसी लोकप्रियता को देखते हुए मौर्य शासक अशोक द्वारा निर्मित धमेख स्तूप पर ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

  • सिर्फ 10 किमी दूर है सारनाथ, जो बौद्ध धर्मावलंबियों का एक बड़ा तीर्थ है। ऐसा माना जाता है कि बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध ने पहला उपदेश यहीं सारनाथ में दिया था। इसे महाधर्म चक्र परिवर्तन के नाम से जाना जाता है।
  • धमेक स्तूप और अन्य का निर्माण यह संकेत है कि उस समय इसकी क्या अहमियत रही होगी।
  • चौखंडी स्तूप वह जगह है जहां पहली बार सारनाथ आए भगवान बुद्ध की अपने पहले पांच शिष्यों से मुलाकात हुई थी।
  • यह जगह धर्मराजिका स्तूप और मूलगंध कुटी विहार जैसी पुरातात्विक महत्व की संरचनाओं के लिहाज से भी खासी अहमियत रखती है।
  • सम्राट अशोक ने 273-232 ईसापूर्व यहां बौद्ध संघ के प्रतीक स्वरूप विशालकाय स्तंभ स्थापित किया था। इसके ऊपर स्थापित सिंह आज भारत देश का राष्ट्रीय प्रतीक है।

विंध्यांचल

  • सुदीर्घ विन्ध्य पर्वत श्रृंखला का सानिध्य प्राप्त यह क्षेत्र ऐतिहासिक किलों-भवनों भित्ति चित्र कलाओं, शैलाश्रयों, जल प्रपात के रूप में प्रकृति सौन्दर्य प्राप्त है।
  • इसकी गोद में माँ विध्यवासिनी देवी मंदिर के साथ अष्टभुजा व कालीखोह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है।
  • विन्ध्यवासिनी मंदिर, अष्टभुजा मंदिर व कालीखोह मंदिर की त्रिकोण परिक्रमा का विधान है।
  • बासंतिक व शारदीय नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं का आवगमन अधिक होता है।
  • इसके अतिरिक्त बूढ़ेनाथ मंदिर तारकेश्वर मंदिर, रामेश्वर महादेव मंदिर, तारादेवी मंदिर, वामन देवी मंदिर, बदेवरानाथ, शिवधाम खैरा शिवधाम, कंतित शरीफ आदि दर्शनीय स्थल है।

सोनभद्र

  • सोनभद्र अपनी विशाल संस्कृति, इतिहास, प्रकृति, खनिज, समृद्ध वनस्पति जीवों, रॉक नक्काशी, रॉक पेंटिंग आदि के लिए जाना जाता है। ये सोनभद्र की विशेषताएं हैं।
  • इस क्षेत्र में पर्वतारोहण, ट्रेकिंग, बंजी जंपिंग, रिवर राफ्टिंग आदि साहसिक गतिविधियों की काफी संभावनाएं हैं
  • विजय गढ़ किला, अगोरी गढ़ किला, शिव द्वार, मुक्खा फॉल, महुआरिया कैमूर वन्यजीव अभयारण्य, कौवाखोह रॉक शेल्टर, लेखनिया रॉक शेल्टर, पंचमुखी हिल रॉक शेल्टर रिहंद बांध, सोन इको पॉइंट सोनभद्र के प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं।

चुनार

  • वाराणसी से लगभग 40 किमी0 एवं मीरजापुर से 35 किमी0 की दूरी पर गंगा नदी के किनारे अवस्थित चुनार का नाम साहित्य में चरणाद्रि, नैनागढ़ आदि नामों से उल्लिखित है।
  • यहां स्थित किले के निर्माण विषय में उल्लेख प्राप्त होता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि के लिए किले का निर्माण करवाया था।
  • इसके अतिरिक्त यहां राजा भतृहरि की समाधि, सिद्धनाथ की दरी, दुर्गाखोह आदि अन्य पर्यटन गंतव्य है।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग काशी में स्थित है। काशी नगरी के उत्तर की तरफ ओंकारखंड, दक्षिण में केदारखंड और बीच में विश्वेश्वरखंड है। प्रसिद्ध विश्वनाथ- ज्योतिर्लिंग इसी खंड में स्थित है। शिवपुराण में प्राप्त विवरण के अनुसार श्री काशी विश्वनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में मान्यता प्राप्त है।

मंदिर को विभिन्न आक्रान्ताओं द्वारा ध्वस्त करने का विवरण प्राप्त होता है। मंदिर में पांच प्रहर आरती संपादित होती है। मंदिर दर्शन आदि से संबंधित सभी सुविधाओं हेतु मंदिर की वेबसाइट shrikashivishwanath.org से सहायता प्राप्त की जाती है। मंदिर प्रशासन द्वारा लाइव दर्शन की व्यवस्था भी की गयी है।

मनमंदिर वेधशाला और वर्चुअल एक्स्पीरीयेंशियल म्यूजियम (आभासी प्रायोगिक संग्रहालय)

यह वेधशाला जयपुर के राजा मान सिंह द्वारा दशाश्वमेध घाट के पास मनमंदिर घाट पर बनाई गई थी जिसमें उस समय की कॉल काउंट जानने के लिए उपकरणों को देखा जा सकता है।

वर्चुअल एक्स्पीरीयेंस आधुनिक और परिष्कृत वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से वाराणसी के विभिन्न पहलुओं, मूर्त और अमूर्त की झलक दिखाता है। वीईएम का दौरा एक आगंतुक के लिए एक अनूठा अनुभव होगा जहां वे वाराणसी के पवित्र घाट, शास्त्रीय संगीत, साड़ी की बुनाई, लेखक/लेखक, राम लीला, स्मारकों, संकरी गलियों और पान की दुकान आदि के 3 डी दृश्य का अनुभव करेंगे। गंगा के धरती पर अवतरण की कहानी भी दर्शकों को बेहद दिलचस्प तरीके से दिखाई जाती है।

वाराणसी का अवलोकन

वाराणसी

काशी के घाट

सारनाथ

सारनाथ में बौद्ध मंदिरों और मठों की सूची:

1. महाबोधी सोसाइटी ऑफ इंडिया (श्रीलंका मंदिर) सुमित्रानन्दन थेरो 9599732503
2. तिब्बती मन्दिर तेन्जीन 7082279411
3. थाई मन्दिर डा. मांगालिको 9450546919
4. जापानी मन्दिर कालसंग नारबू (मैनेजर) 6393451110, 9450015325
5. इण्डो श्रीलंका मन्दिर डा. के. सुमेधा थेरो 9839056094
6. चाइनीज मन्दिर कुलदीप चकमा (मैनेजर) 8127190326
7. नियंगना मन्दिर Pema Tenkyong 7307250307
8. वज्रविद्या संस्थान Phopal (Manager) 941522436
9. वियतनाम मन्दिर Tan 7084610492
10. म्यांमार मन्दिर वन्ना ध्वजा 9450965836
11. कम्बोडियन मन्दिर    
12. शाक्यता बुधिष्ट मन्दिर    
13. धम्मा लभिंग मन्दिर    
14. कोरियन मन्दिर    
15. विपासना    
16. बोधि धम्म मन्दिर    
17. सासाथ इण्टरनेशनल वीनू 9559632599

वाराणसी

हवाई मार्ग से

यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है बाबतपुर जो वाराणसी से 22 किमी तो सारनाथ से 30 किमी दूर है। वाराणसी के लिए दिल्ली, आगरा, खजुराहो, कोलकाता, मुंबई, लखनऊ और भुवनेश्वर से सीधी उड़ान है। काठमांडू, नेपाल से भी सीधी विमान सेवा उपलब्ध है।

रेल मार्ग से

वाराणसी जक्शन और दो महत्वपूर्ण स्टेशन हैं। इस जंक्शन से सभी शहरों के लिए ट्रेन उपलब्ध है।

पंडित दींनदयाल उपध्याय नगर जक्शन, प्रमुख रेलवे स्टेशन है। जो देश के प्रमुख शहरो दिल्ली तथा बनारस कोलकता मुंबई से रेल मार्ग से जुड़ा है।

सड़क मार्ग से

कोलकाता से दिल्ली एनएच 2, एनएच 7 कन्याकुमारी और एनएच 29 गोरखपुर के जरिये वाराणसी पहुंचा जा सकता है। प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से दूरी इस प्रकार है : आगरा 565 किमी, प्रयागराज 128 किमी, भोपाल 791 किमी, बोधगया 240 किमी, कानपुर 330 किमी, लखनऊ 286 किमी, पटना 246 किमी और सारनाथ से 10 किमी दूर है।

सारनाथ

हवाई मार्ग से

यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट बाबतपुर है जो 30 किमी दूर है।

रेल मार्ग से

वाराणसी देश के सभी प्रमुख शहरो से जुड़ा हुआ रेलमार्ग द्वार जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग से

वाराणसी से 10 किमी पर पड़ने वाला सारनाथ राज्य के अन्य शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।

Varanasi Station
Varanasi Airport

वाराणसी

यात्रा एजेंट

  • उ0 प0 पर्यटन कार्यालय, अर्बन हाट, सांस्कृतिक संकुल, मक़बूल आलम रोड, चौका घाट, वाराणसी, दूरभाष - 0542-2505033
  • पर्यटन सुचना केंद्र, कैंट रेलवे स्टेशन, वाराणसी, दूरभाष - 0542-2506670
  • आधुनिक सवागत केंद्र , सारनाथ, दूरभाष - - 958057;4420
  • पर्यटक सूचन केंद्र बाबतपुर हवाई अड्डा, 15-बी द मॉल, कैंट वाराणसी, दूरभाष - 2501784
  • भारत पर्यटन, पर्यटक सुचना केंद्र, बाबतपुर एयरपोर्ट
  • बिहार स्टेट टूरिस्ट ऑफिस, इंग्लिशिया मार्केट, शेर शाह सूरी मार्ग, कैंट, दूरभाष - 2223821

सारनाथ

  • कार्यालय सहायक पर्यटक अधिकारी, आधुनिक स्वागत केंद्र
Travel Desk

वाराणसी

वाराणसी के विभिन्न रेस्त्रां में कांटिनेंटल, इंडियन, चाइनीज़, परंपरागत मुग़लई खाना और व्यंजन मिलते हैं।

  • श्यामला वाटिका,लंका
  • केरला कैफ़े, भेलूपुर चौराहा
  • एल्चिको बार एंड रेस्त्रां, सिगरा
  • आम्रपाली, होटल क्लार्कस, द मॉल, दूरभाष - (0542)2501011
  • मक्डोनल्ड आईपी मॉल सिगरा, जेएचवी मॉल, कैंट
  • हवेली रेस्त्रां, द मॉल, कैंट
  • बर्गर किंग, नदेसर

चिकित्सालय

  • शिव प्रसाद गुप्त चिकित्सालय, कबीर चौरा, दूरभाष - (0542)2214723
  • सर सुंदर लाल चिकित्सालय, बीएचयू, दूरभाष - (0542)2369169
  • राजकीय चिकित्सालय, शिवपुर
  • हिंदू सेवा सदन, चौक, वाराणसी
  • माता आनंदमयी अस्पताल, भदैनी, दूरभाष -
  • राम कृष्ण मिशन अस्पताल, लक्सा, दूरभाष - (0542)2451727
  • मारवाड़ी अस्पताल, गोदौलिया, दूरभाष - (0542)2392611
  • कैंसर संस्थान, पूर्वोत्तर रेलवे लहरतारा दूरभाष - (0542) 224441
  • हेरिटेज अस्पताल, लंका, दूरभाष - (0542) 2369991-5।
  • सूर्या क्लीनिक, महमूरगंज, दूरभाष - (0542)2360682
Varanasi Food
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सारनाथ

रेस्त्रां

  • आनंद रेस्त्रां, सारनाथ
  • रंगोली गार्डन, सारनाथ
  • हाईवे इन् रेस्त्रां, आशापुर, सारनाथ

चिकित्सालय

  • सरकारी अस्पताल, सारनाथ
  • डॉ बैजनाथ चिकित्सालय, सारनाथ

वाराणसी और विंध्याचल मंडल के शिल्प

बनारसी साड़ी

बनारसी साड़ी सुरुचिपूर्ण ब्रोकेड रेशम की साड़ियाँ हैं। ये देश की बेहतरीन साड़ियों में जानी जाती हैं और अपने सुनहरे और चांदी के ज़री के काम के लिए लोकप्रिय रही हैं, यह हर भारतीय महिला के लिए सबसे पसंदीदा दुल्हन पोशाक है | पीलीकोठी क्षेत्र में बुनकरों को सैकड़ों छोटी कार्यशालाओं में देखा जा सकता है जहां वे दिन-रात ज़री और लोम में जुनून के साथ अद्भुत शिल्प बनाते हैं।

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लकड़ी के लाह के बर्तन और खिलौने

वाराणसी के लाहवेयर खिलौने विस्तार से और रंगीन तरीके से तैयार किया जाता है। सभी खिलौने यूकेलिप्टस से बने हैं। गूलर और कोरैया की लकड़ियाँ और नक्काशीदार और हाथों से रंगी हुई होती हैं। हीटिंग मिक्सिंग और कूलिंग को प्रोसेस करके कलरिंग को लाख के साथ किया जाता है।

बेल मेटल वर्क्स

काशीपुरा की गलियों के आसपास, कला के संपन्न कार्यों को प्रक्रिया के दौरान देखा जा सकता है। लेकिन कला का प्रदर्शन हर जगह है, मंदिरों की घंटियों से लेकर वाराणसी में विशिष्ट बेल धातु या मिश्रित धातु से बने आकर्षक दैनिक उपयोग के बर्तन तक।

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मेटल रिपोज

काशीपुरा की गलियों में घूमते हुए हथौड़ों की आवाज सुनाई देती है। ध्वनि और कुछ नहीं बल्कि धातु के सुंदर शिल्प का अनावरण है। धातु शिल्प के इस क्षेत्र में विविध वस्तुओं का निर्माण होता है। सोने, पीतल, चांदी या तांबे जैसी धातुओं की लचीली कीमती शीट को आवश्यक आकार में ढाला जाता है और फिर उन्हें रिवर्स साइड पर तरल लैन की परत से ढक दिया जाता है। जब लाख को व्यवस्थित किया जाता है, तो धातु की चादरों को लाख के ऊपर हथौड़े से तराशा जाता है, जो डिजाइन को अग्रभाग पर उभारता है। थाली, जग, सुपारी और इस तरह के कई अन्य सामान इनसे सजाए गए हैं जो सभी को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

रामनगर की अंडरकट स्टोन नक्काशी

गंगा के दूसरी ओर रामनगर का वास है। इस बीच, रामनगर में एक सुंदर कला सादगी और विलक्षणता का एक आदर्श मिश्रण है। 'भांग वाली गली' के स्थानीय लोग पारंपरिक रूप से पीढ़ियों से सुरुचिपूर्ण नक्काशी के काम में शामिल हैं। पुराने दिनों में कलाकृति के लिए हाथी दांत, हड्डी और चंदन का इस्तेमाल किया जाता था। जिनकी जगह अब मार्बल रॉक टैबलेट ने ले ली है। काम के परिणाम न केवल बहुत सुंदर हैं, बल्कि स्तब्ध करने वाले भी हैं क्योंकि सटीक डिजाइन में मॉडल के ऊपर नेट जैसी नक्काशी शामिल है और मॉडल के अंदर उसी मॉडल की प्रतिकृति है। मॉडल अंदर से खोखले हैं। सुंदर सजावटी टुकड़े उत्कृष्ट क्षमता की सूक्ष्म कलाओं का परिणाम हैं।

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क्ले और टेराकोटा वर्क्स

चाय का घूंट सभी के लिए आनंददायक होता है और मिट्टी के प्यालों में परोसी जाने वाली चाय का स्वाद अलग होता है। ये मिट्टी के प्याले भारत के अधिकांश हिस्सों में पाए जाते हैं। पर इनका निर्माण वाराणसी के पास भट्टी गांव में देखा जा सकता है। ये मिट्टी के बर्तन, बर्तन, फूलदान, कप और बर्तन एक कताई आधार पर बनाए जाते हैं और मिट्टी को हाथों से ढाला जाता है। फिर उन्हें धूप में सुखाया जाता है और बाद में पकाया जाता है। लेकिन मिट्टी की कला बर्तनों से खत्म नहीं होती है। यहां के परिवार विभिन्न देवी-देवताओं की मिट्टी की मूर्तियां बनाने में भी लगे हैं।

जरदोजी बैज बनाना

जरदोजी बैज बनाने के शिल्प का काम शहर में औपनिवेशिक काल से ही रहा है। जरदोजी का काम किसी एक क्षेत्र या विशिष्ट कला में केंद्रित नहीं है, कला के विभिन्न कलाओं को भी लखनऊ और प्रयागराज में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाता है, लेकिन बैज बनाने का शिल्प अनिवार्य रूप से यहां वाराणसी के शिवाला में किया जाता है। रक्षा और पुलिस बलों के लिए रैंक बैज बनाने का उपयोग न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के कई अन्य देशों में किया जाता है। जरदोजी में जरी के साथ कढ़ाई का काम शामिल है, जिसमें पहले 'खालाबातून' का इस्तेमाल किया जाता था जो सोने में लिपटे चांदी के धागे थे।

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कांच के मोती

वाराणसी के कांच के मोती माला बनने के लिए तैयार होने से पहले एक लंबा रास्ता तय करते हैं। कांच के टुकड़ों को छानकर, गर्म किया जाता है, रंगीन किया जाता है, फिर से गरम किया जाता है, फिर उन्हें अन्य रंगीन कांच के स्क्रैप का उपयोग करके आकार और सजाया जाता है। बाद में उन्हें कठोर होने के लिए छोड़ दिया जाता है और अंत में अद्वितीय आकार और आकार के मोतियों को निकालकर इन सुंदर आभूषणों जैसे हार, कंगन, झुमके, अंगूठियां और कई अन्य प्रकार के गहने में बनाया जाता है। इन मोतियों को विश्वनाथ गली के बहुत प्रसिद्ध रास्तों के पास बनाया और बेचा जाता है।

मिर्जापुर दरी

एक औसत घर में दरी एक बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तु है यहाँ ये सूती जूट के ऊन से बनी चटाई हैं और हाथों से बहुत ही सरल तरीके से बुनी जाती हैं, जबकि गैर-शानदार और कालीनों की तुलना में सस्ता होने के बावजूद इसकी अनूठी और जीवंत डिजाइन इसे आकर्षक बनाती है

मिर्जापुर में इन चटाईयों के उत्पादन में हजारों की संख्या में लोग शामिल हैं।

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भदोही के कालीन

संत रविदास नगर के रूप में नामित भदोही को लंबे समय तक 'कालीन शहर' कहा जाता रहा है। भदोही के हाथ से बुने हुए कालीन विदेशों में प्रमुख रूप से निर्यात किए जाते हैं और पड़ोसी देशों को काफी प्रतिस्पर्धा देते हैं।

हाथ से बुने हुए कालीन केवल ऊन से बने होते हैं और सूक्ष्म विवरणों के साथ बुने जाते हैं। प्रत्येक गलीचा पर कारीगरों द्वारा विशेष ध्यान दिया गया है। ये पर्याप्त तकनीक और बढ़िया कौशल के साथ बनाए गए हैं और नई तकनीक और निर्माण ने समय के साथ खुद को निखारा है। भव्य कालीन बेचने के लिए तैयार होने पर बहुत सुन्दर लगते हैं।

गुलाबी मीनाकारी

कीमती, जीवंत, रंगीन और सुरुचिपूर्ण, बनारसी गुलाबी मीनाकारी अपनी तरह की एक कला है । यहां किए गए कार्य न केवल असाधारण रूप से नाजुक हैं बल्कि बहुत कीमती भी हैं। मीनाकारी मीना को विभाजित करती है जिसका अर्थ है चांदी की कारी जिसका अर्थ है अरवर्क। कला का काम कला के आकर्षक टुकड़ों में धातु को ढालकर सुंदर सजावटी डिजाइन पेश करता है। लेकिन जो चीज इसे अद्वितीय बनाती है, वह है इसका चमकदार रंग और हाथ से किये गए बहुत ही जटिल काम से चित्रित पुष्प पैटर्न।

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चुनार बलुआ पत्थर का काम

चुनार का ऐतिहासिक किला भारत के कई मिथकों, लोक कथाओं और कहानियों से मुग्ध है। भारत के राष्ट्रीय प्रतीक में पत्थर की नक्काशी; अशोक की 'शेर राजधानी', काम का एक प्राचीन नमूना है। इसे लगभग 2300 साल पहले चुनार के पहाड़ी मैदान में किसी मध्य कार्यशाला में बनाया गया; अद्वितीय स्थानीय बलुआ पत्थर के साथ।

आज भी, इस उत्कृष्ट कला ने खुद को खो जाने से बचा लिया है। देदीप्यमान का उपयोग कीमती घर की सजावट के टुकड़े, देवताओं और देवताओं की मूर्तियों और मूर्तियों को हाथों से बनाने के लिए किया जाता है और कलाकार उन्हें हस्तनिर्मित उपकरणों से बनाते हैं। चुनार के वर्तमान मूर्तिकार भी संगमरमर की पत्थर की मूर्तियाँ बना रहे हैं और उन्हें अपने हाथों से रंग रहे हैं।

सेवापुरी की खादी

वाराणसी से 30 किमी दूर सेवापुरी में स्थित गांधी आश्रम खादी के काम को आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। नए सौर ऊर्जा से चलने वाले करघे बेहतरीन गुणवत्ता वाले खादी के कपड़े तैयार करते हैं, ताकि राष्ट्र का कपड़ा व्यापक बाजार में अपनी जगह बना सके।

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बांस की टोकरी

हर कोई जो एशिया प्रशांत के आसपास रहा है, उसने सड़क किनारे फेरीवालों और व्यापारियों को बांस की टोकरियों पर सामान बेचते हुए देखा होगा। ये टोकरियाँ वाराणसी के आसपास उपनगरीय अस्थायी झुग्गियों में रहने वाले लोगों द्वारा भी बनाई जाती हैं। केवल बांस के स्क्रैप और एक तेज चाकू का उपयोग करके बनायीं गयीं ये टोकरियाँ पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल और वजन में हल्की हैं। बांस की छड़ें पूरी तरह से हाथों से बुनी और चित्रित की जाती हैं। गुलदस्ते की टोकरियाँ, जूते की रैक फूलों की टोकरियाँ कुछ अन्य उत्पाद हैं जो एक ही बांस की छड़ियों से बने होते हैं।

अर्बन हाट

बाहर से आने वाले पर्यटकों की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए एक अर्बन हाट तैयार किया गया है। यहां विभिन्न प्रदेशों के राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कारीगर अपने-अपने उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं। यहां कलाकारों को 15-15 दिनों के लिए अपने उत्पाद प्रदर्शित करने का मौका दिया जाता है ताकि कला के प्रति रोमांच और उत्सुकता बनी रहे। हाट में सार्वजनिक उपयोग की सारी सुविधाएं जुटाई गई हैं। साथ ही यहां आने वाले लोग लज़ीज़ भोजन के साथ भारतीय गीत -संगीत , कला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद उठा सकते हैं।

स्थान: अर्बन हाट, सांस्कृतिक संकुल, मक़बूल आलम रोड, चौका घाट, वाराणसी।

सोवेनियर शॉप और मॉल्स

  • मेसर्स मेहरोत्रा सिल्क फैक्ट्री, एस.सी.-21/72, इंग्लिशिया लाइन, वाराणसी
  • मेसर्स बाबा ब्लैक शीप, भेलूपुर, वाराणसी
  • जेएचवी, द मॉल, कैंट
  • मॉडर्न रिसेप्शन सेंटर, सारनाथ
Varanasi Shopping

मेले और त्यौहार

महाशिवरात्रि, रंगभरी एकादशी, नवरात्रि, गंगा महोत्सव, दीपावली, देव दीपावली, ध्रुपद मेला, बुध मंगल, संकट मोचन संगीत समारोह, होली, हनुमान जयंती, बुद्ध पूर्णिमा लोलार्क छठ, राम नगर की रामलीला, नाटी इमली का भारत मिलाप, नक्कतैया आदि।

सुबह-ए-बनारस

वाराणसी या काशी अध्यात्म के दिव्य प्रकाश से आलोकित शहर है। माना जाता है कि यह दुनिया के चंद प्राचीन शहरों में से एक है जिसका दिल आज भी धड़कता है।

इस शहर की रवायतें, परंपराएं और पौराणिक विरासत को कोई भी दूसरा शहर चुनौती नहीं दे सकता। यह शहर हर आने वाले को ऐसे अनुभवों से नवाजता है कि सामने वाले की सांसें थमी सी रह जाती हैं। गंगा के घाट की सुबह तो कभी भी नहीं भूली जा सकती है। उदय होते सूरज की किरणें गंगा के पानी से अठखेलियां करती हुईं उसके तटों, मंदिरों और मठों को नहलाती सी लगती हैं। आत्मा को भीतर तक झंकृत कर देने वाले मंत्रों और श्लोकों का उच्चारण, हवा में तैरती अगरबत्तियों की सुगंध मन को तृप्त कर देती है। ऐसे जादुई माहौल के बीच गंगा के पवित्र पानी में डुबकी मानो एक नया जीवन लेकर आती है। इस माहौल को और भी सम्मोहक बनाता है यहां के कण-कण में फैला गीत-संगीत, कला और साहित्य का अद्भुत संगम। सच में.… यह एक ऐसा शहर है जहां अनुभव और कुछ नया खोजने का जुनून एक नए संसार की रचना करता है।

गंगा महोत्सव

यह अपनी तरह का अकेला और अनूठा आयोजन है, जो मंदिरों, घाटों और परम्पराओं के इस शहर के आकर्षण को दोगुना कर देता है।

इसके आयोजन के दौरान शहर की आबो-हवा में शास्त्रीय संगीत मानो रच-बस जाता है। यह वातावरण को ऐसे रहस्य का आवरण देता है जहां हरेक को स्वार्गिक और दिली संतुष्टि की अनुभूति होती है। खास बात यह है कि शास्त्रीय संगीत की यह धारा संगीत घरानों के दिग्गजों के दिल से आती है। यह ऐसा अनुभव है जिसे जीवन पर्यन्त भुलाया नहीं जा सकता। इस पांच दिवसीय गंगा महोत्सव का प्रमुख आकर्षण विश्वास और संस्कृति का अद्धभुत संगम हैं। जिसे और भी बढ़ाने का काम करता है इस दौरान लगने वाला शिल्प मेला और अनूठी देव दीपावली का आयोजन। देव दीपावली कार्तिक की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन मिट्टी के अनगिनत दीये श्रृंखलाबद्ध्ध तरीके से पानी में तैरते हुए गंगा के जादुई आभास को और बढ़ाते हैं।

बौद्ध महोत्सव

मानव जाति को भगवान बुद्ध के रूप में एक सर्वकालिक और महान आध्यात्मिक गुरु भारत ने दिया है। इस सच्चाई के आलोक में इतिहासकार एडविन अर्नाल्ड अगर उन्हें 'लाइट ऑफ एशिया' कहते हैं तो कतई गलत नहीं है। बुद्ध की शिक्षा भारत के अलावा अन्य देशों की सीमाओं को पार कर लाखों लोगों के दिल और दिमाग को झंकृत करती है।

इस महोत्सव का आयोजन भगवान बुद्ध के जन्म को परंपरागत और धार्मिक संदेशों के अनुरूप मनाने के लिए किया जाता है। सारनाथ में इस अवसर पर एक बड़ा मेला लगता है। मई के महीने में लगने वाले इस मेले में बुद्ध की निशानियों को आम लोगों के दर्शन के लिए सार्वजनिक किया जाता है। लाखों दिये इस दिन के आकर्षण को और बढ़ाते हैं,जिन्हें मूलगंध कुटी विहार में करीने से रखा जाता है।