मथुरा साल भर किसी न किसी पर्व-मेले के भव्य आयोजन से गुलजार रहता है। हां, रंगों के त्योहार होली का अंदाज जरूर सबसे निराला होता है। इस अवसर पर कई शास्त्रीय और लोक कलाकार अपनी अपनी प्रस्तुतियां दे लोगों को भाव-विभोर कर देते हैं।
इसके अलावा भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी भी बहुत धूम-धाम और हर्ष-उल्लास के साथ पूरे ब्रज में मनाया जाता है।
रासलीला के जरिये श्री कृष्ण के गोपियों संग किस्सों समेत उनके जीवन के कई पहलुओं को भी सामने लाया जाता है।
जन्माष्टमी पर आधी रात को मंदिरों में जश्न का माहौल होता है। श्री कृष्ण के बालस्वरूप को दूध आदि से अभिषेक कर उन्हें चांदी के पालने पर विराजमान कराया जाता है। भजन गाते हुए भक्तजन कृष्ण के बालस्वरूप को खिलौनों के रूप में तमाम तोहफे अर्पित करते हैं। यह आयोजन रात भर चलता है।
इसके अलावा ब्रज के अन्य पर्व और त्योहार इस प्रकार हैं:
बसंत पंचमी
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वृंदावन
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जनवरी-फ़रवरी
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रथ का मेला
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वृंदावन
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मार्च
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होली
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बरसाना/नंदगांव/ रावल/मथुरा/ वृंदावन/गोकुल/फलन
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फ़रवरी /मार्च
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अक्षय तृतीया
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वृंदावन
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अप्रैल/मई
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फूल बंगला
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वृंदावन
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अप्रैल से अगस्त
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हिंडोले
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मथुरा, वृंदावन
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जुलाई/अगस्त
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गुरु पूर्णिमा
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गोवर्धन
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जुलाई/अगस्त
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
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ब्रज मंडल
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जुलाई/सितंबर
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नंदोत्सव
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ब्रज मंडल
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अगस्त /सितंबर
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बलदेव छठ
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बलदेव
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अगस्त /सितंबर
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मटकी लीला
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बरसाना
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अगस्त /सितंबर
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राधा अष्टमी
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बरसाना
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अगस्त /सितंबर
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हरिदास जयंती
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वृंदावन
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अगस्त /सितंबर
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दीपावली/दीपदान
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मथुरा/गोवर्धन
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अक्टूबर/नवंबर
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अन्नकूट/गोवर्धन पूजा
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गोवर्धन
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अक्टूबर/नवंबर
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यम द्वितीया
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विश्राम घाट, मथुरा
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अक्टूबर/नवंबर
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कंस वध
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मथुरा
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सितंबर
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अक्षय नवमी
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वृंदावन
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अक्टूबर/नवंबर
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दाऊजी की पूर्णिमा
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बलदेव
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नवंबर/दिसंबर
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हरियाली तीज
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ब्रज मंडल
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जुलाई
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होली
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ब्रज मंडल
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फ़रवरी /मार्च
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लट्ठमार होली
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नंदगांव, फलन, दाऊजी, रावल, वृंदावन, मथुरा
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फ़रवरी /मार्च
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ब्रज परिक्रमा
हिंदू कैलेंडर के हिसाब से भादों माह में, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ यहां उत्सव और उल्लास का समय होता है। इसी माह प्रसिद्ध ब्रज परिक्रमा के लिए लाखों भक्तजन यहां उमड़ते हैं। इस दौरान ब्रज भूमि के उन सभी तीर्थों की यात्रा की जाती है, जिनका संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। परंपरागत रूप से हर साल लाखों तीर्थयात्री ब्रज मंडल की चौरासी कोस की परिक्रमा करते हैं। इसमें 12 वन और 24 उपवन शामिल हैं। पवित्र गोवर्धन पर्वत, यमुना नदी और इसके किनारे पड़ने वाले तमाम तीर्थ शामिल हैं।
यह तीर्थयात्रा मथुरा के उत्तर में कोटबन से नंदगांव, बरसाना से होते हुए पश्चिम में गोवर्धन की पहाड़ी से लेकर दक्षिण-पश्चिम तक तो पूर्व में यमुना तक जहां बलदेव मंदिर स्थित है तक जाती है। त्योहार के इस अवसर पर भव्य मेला और रासलीला अन्य आकर्षण हैं।
गोकुल
श्री कृष्ण के वास स्थलों में से एक गोकुल, महावन से 1.6 किमी यमुना के पार पड़ता है। यही वह जगह है जहां यशोदा ने गुपचुप तरीके से बाल गोपाल का लालन-पालन किया।
गोकुल को वल्लभाचार्य (1479-1531) के दौर में भी खासा महत्व मिला, जब यह भक्ति संप्रदाय के अध्ययन का प्रमुख केंद्र बन कर उभरा।कहते हैं यहां स्थित तीन प्राचीन मंदिर गोकुलनाथ, मदन मोहन और विट्ठलनाथ 1511 में ही बन कर तैयार हुए। इसके अलावा द्वारिकानाथ और बालकृष्ण मंदिर भी यहाँ के प्रमुख मंदिरों में से हैं। इन्हें जोधपुर के राजा विजय सिंह ने 1602 में भगवान महादेव के सम्मान में बनवाया था।
गोकुल में जन्माष्टमी के अवसर पर चारों ओर हर्षोल्लास का माहौल रहता है। मेले तो खैर साल भर लगे ही रहते हैं। इसके अलावा अन्य त्योहार मसलन भादों में जन्मोत्सव, कार्तिक माह की अमावस्या में अन्नकूट और त्रिनवत त्योहार भी धूमधाम से मनाए जाते हैं।
गोकुल में घूमने लायक स्थान हैं-गोकुलनाथ मंदिर, राजा ठाकुर मंदिर, गोपाल लालजी मंदिर, मोरवाला मंदिर, नंद भवन और दाऊजी मंदिर।
जनसंख्या: 4,021 (2011Census)
महावन
यमुना के बाएं किनारे पर मथुरा से लगभग 14 किमी पर मथुरानाथ तीर्थनगरी पड़ती है । यह चौरासी खंभा के लिए भी जानी जाती है। बलदेव की माताजी रोहिणी का महल अब छठी-पालना मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसके आलावा श्यामलाजी मंदिर, योगमाया मंदिर, त्रेनेरात्रि मंदिर और महामल्ल रायजी का महल यहां के अन्य तीर्थस्थल हैं।
जनसंख्या: 2,676 (2011की जनगणना के अनुसार)
बलदेव
बलदेव मथुरा से 20 किमी उत्तर-पूर्व तो दक्षिण-पूर्व में महावन से 8.5 किमी पर पड़ता है। इसका यह नाम भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर के नाम पर पड़ा है। इसका निर्माण लगभग 200 साल पहले दिल्ली के श्याम दास ने कराया था। इसके गर्भ-गृह में बलदेव या बलराम की उनकी पत्नी रेवती के साथ मूर्ति प्रतिष्ठित है। इसके समीप ही ईंटों से बना क्षीर सागर या बलभद्र कुंड है। कहते हैं कि मंदिर में प्रतिष्ठित मूर्ति यहीं से प्राप्त हुई थी। यह स्थान दाऊजी मंदिर एवं होली का हुररंगा उत्सव के लिए भी काफी प्रसिद्ध है।
जनसंख्या: 9,684 (2001 की जनगणना के अनुसार)
गोवर्धन
डीग को जाने वाले स्टेट हाई वे पर मथुरा से 25 किमी पश्चिम में पड़ता है। हिंदुओं का यह प्रसिद्ध तीर्थस्थान, गोवर्धन 8 किमी में फैली संकरी बलुई पत्थरों की पहाड़ी पर स्थित है। कहते हैं बाल स्वरूप कृष्ण ने इस पहाड़ी को सात दिन तक अपनी एक उंगली पर उठाए रखा था ताकि ब्रज के लोगों को बरसात से बचाया जा सके जिसका कारण भगवान इंद्र का प्रकोप माना जाता है।
गोवर्धन के बिल्कुल लगा हुआ है हाथ की कारीगरी को दर्शाता चुनी गई ईंटों से बना विशाल तालाब जिसे मानसी गंगा के नाम से जानते हैं। कहते हैं यह ईश्वरीय प्रेरणा से अस्तित्व में आया। इसके प्रांगण का निर्माण आमेर के राजा भगवान दास ने 1637 में कराया। बाद में तालाब की तलछट से ऊपर तक सीढ़ियों का निर्माण राजा मान सिंह ने कराया। इसके पास ही है लाल बलुई पत्थर से बना हरिदेव मंदिर और कुसुम सरोवर। इसकी शोभा बढ़ाती हैं नक्काशीदार छतरियां। यह छतरियां वास्तव में भरतपुर के शाही परिवार से जुड़े सदस्यों की निशानी हैं जो 1825 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए थें। इसके दक्षिण की तरफ भरतपुर के राजा सूरजमल की खूबसूरत छतरी है।
जनसंख्या: 18,494 (2001 की जनगणना के अनुसार)
बरसाना
मथुरा से 50 कि.मी. तथा गोवर्धन से 19 कि.मी. पर स्तिथ बरसाना ब्रम्हा के नाम की एक पहाड़ी के निचले हिस्से में बसा हुआ है। यह राधा जी का घर माना जाता है।
इस जोड़े को समर्पित कई मंदिर यहां पर हैं, जो पहाड़ी पर चढ़ते क्रम में स्थित हैं। इनमें भी प्रमुख है राधा-रानी मंदिर, जिसे भक्तजन लाड़लीजी के मंदिर के नाम से भी जानते हैं। बरसाना के इस सबसे खूबसूरत मंदिर को ओरछा के राजा बीर सिंह जू देव ने 1675 में बनवाया था। इसके बगल में संगमरमर का मंदिर बाद में बनवाया गया। इसके अलावा अन्य तीन तीर्थस्थल हैं मन मंदिर, दरगाह और मोर-कुटीर मंदिर। पहाड़ी पर राधा-रानी मंदिर और अन्य मंदिरों को जोड़ने वाले क्षेत्र को संकरी-खोर कहते हैं। इसी स्थान पर भादों माह (जुलाई-अगस्त) में लगता है वार्षिक मेला लगता है।
राधा-रानी का जन्मदिन भाद्रपद की नौवीं को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं मोर को लड्डुओं का भोग लगाती हैं। यह राधाजी द्वारा भगवान कृष्ण को लड्डू खिलाए जाने का प्रतीक माना जाता है।
यहीं पर कुछ प्राचीन कुंड भी हैं। इनमें प्रेम सरोवर, रूप सागर, जल महल और भनोखर प्रमुख हैं।
बरसाना अपनी लट्ठमार होली के लिए भी प्रसिद्ध है। इसे देखने देश-विदेश के पर्यटक यहां आते हैं।
जनसंख्या: 9,960 (2001 की जनगणना के अनुसार)
नंदगांव
बरसाना से उत्तर में 8.5 किमी दूरी पर मथुरा मार्ग पर स्तिथ है नंदगांव। प्रचलित धारणा के मुताबिक यह श्री कृष्ण के पालक पिता नंद का घर है। यहां पहाड़ी के शीर्ष पर नंद राय का विशाल मंदिर स्थित है, जिसे जाट शासक रूप सिंह ने बनवाया था। यहां स्थित अन्य मंदिर भगवान नरसिंह, गोपीनाथ, नृत्य गोपाल, गिरधारी, नंद नंदन और यशोदा नंदन को समर्पित हैं। थोड़ी ही दूर पर है पान सरोवर। यह एक बड़ा तालाब है जिसके किनारे चुनी ईंटों से घाट बनाए गए हैं। पौराणिक कथा के अनुसार यहीं पर भगवान श्री कृष्ण अपनी गायों को लेकर आते थे। यहां से कुछ ही दूरी पर पड़ती है कदंब बाग़, जिसे ऊधोजी की क्यारी के नाम से भी जाना जाता हैं।
जनसंख्या: 9,960 (2001 की जनगणना के अनुसार)
राधाकुंड
गोवर्धन से महज पांच किमी और मथुरा से पश्चिम में 26 किमी पर पड़ता है एक विशाल तालाब राधाकुंड। कहते हैं यहीं पर भगवान कृष्ण ने अरिस्त का वध किया था। इस परिघटना को मानाने के लिए कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) की अमावस्या की अष्टमी को अहोई अष्टमी त्योहार मनाया जाता है। इस दिन यहां एक बड़ा मेला लगता है।
जनसंख्या: 5,932 (2001 की जनगणना के अनुसार)