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लखनऊ हेरिटेज वॉक

लखनवी विरासत को जानने-समझने का सफर पुराने लखनऊ के लाल पुल से शुरू होता है। फिर टीले वाली मस्जिद, बड़ा इमामबाड़ा, गोल दरवाजा, चौक बाजार, फूल वाली गली से होते हुए अकबरी दरवाजे तक जाता है।

बेहतर होगा कि आप कोई अनुभवी गाइड लें, जो लखनऊ की समृद्ध स्थापत्यकला का प्रदर्शन करती इमारतों व स्मारकों से जुड़े प्रश्नों और पर्यटकों की जिज्ञासाओं को शांत कर सके। साथ ही लखनवी परंपराओं से भी अवगत करा सके।

प्राचीन लखनऊ में वर्ष 1766 तक पंच महल शहर का प्रमुख स्थान बन चुका था और बाद में इसे मच्छी भवन नाम दिया गया। इस महल को यह नाम दिए जाने के पीछे संभवतः इसकी 26 मेहराबों में प्रत्येक पर दो मछलियों का भित्ति चित्र है, अथवा यहाँ के शासक को मुग़ल शासक द्वारा मच्छी मरताब का ख़िताब दिया गया था, जिसका अर्थ है मछली का गौरव। आमने सामने दो मछलियाँ आगे चलकर शेख का, नवाबों का और अंततः ब्रिटिश राज्य का प्रतीक चिन्ह बना। आज भी लखनऊ के कई भवनों और स्मारकों पर यह चिन्ह देखा जा सकता है।

एक किवदंती के अनुसार भगवान् राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने त्रेता युग में इस नगर की नींव रखी थी। तबसे इसे लक्ष्मणपुर के नाम से जाना जाता है। आज के गढ़ी पीर मुहम्मद के दक्षिण पश्चिम में लखनऊ का चौक क्षेत्र है जो पुराने लखनऊ की ह्रदय स्थली है। लखनऊ नाम का उद्गम संभवतः लखना अहीर के नाम से है, जिसने मच्छी भवन नाम का किला बनवाया था।

आज यह क्षेत्र अनोखे सांस्कृतिक आकर्षणों का केंद्र है। इनमे यहाँ की इमारतें, हस्तशिल्प और कारीगरों के काम और यहाँ के पुराने निवासी शामिल हैं।

चौक में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग सम्राट अकबर (1566-1605) के पहले से रहते आ रहे हैं। वर्ष 1590 में जब अकबर ने पूरे देश को बारह प्रान्तों में विभाजित किया, तब लखनऊ को सूबेदार, या अवध के राज्यपाल की राजधानी के तौर पर चिन्हित किया गया। उस समय बिजनपुर के एक जमींदार शेख अब्दुल रहमान ने दौलत कमाने के लिए दिल्ली का रुख किया। बाद में वह राजकीय सेवा में अधिकारी बने और उन्हें लखनऊ में जागीर दी गयी। उन्होंने पीर मुहम्मद की पहाड़ी पर अपना घर बनाया और उसके निकट एक किला बनवाया जो मच्छी भवन कहलाया।

इसके निर्माण से पहले चौक के प्रमुख निर्माण गोल दरवाज़ा और शाह मीना की मजार थे। शाह मीना एक प्रख्यात इस्लामी संत थे जो लखनऊ में वर्ष 1450 के आसपास रहे।

वर्ष 1775 में नवाब आसफुद्दौला के राज्य सँभालने के साथ ही लखनऊ की शान बहुत बढ़ गयी।

मच्छी भवन के पश्चिम में गोमती नदी है,जिसके किनारे नवाब ने दौलतखाना नाम से अपना निवास बनाया। उन्होंने ही रूमी दरवाज़ा और बड़ा इमामबाड़ा का भी निर्माण कराया। वर्ष 1857 के संग्राम के बाद शहर में एक नए प्रकार के निर्माण की आवश्यकता महसूस की गयी। इस नए निर्माण में उपनिवेशी समय के रंग दिखते हैं। ब्रिटिश शासकों ने अपनी जरूरत के हिसाब से निर्माण कराया और धीरे-धीरे चौक का प्रभाव कम होने लगा। लेकिन आज भी बदलते समय और संस्कृति के साथ यहाँ पुराने ज़माने के कई रंग जिन्दा हैं। चांदी के वर्क बनाने के लिए हथौड़े की ठक ठक, इतर की महक, घी में बनी मिठाइयों की महक, गोटा और किनारी की दुकानों की चमक, सर्राफे की चहल पहल,आदि आज भी पुराने चौक की याद दिलाते हैं। सोने चांदी के आभूषण, चिकन की कढ़ाई, फूल वाली गली में फूल, ज़री-कामदानी के काम आदि के लिए चौक आज भी प्रसिद्ध है।

लखनऊ हेरिटेज वाक

पुराने लखनऊ की यात्रा का एक निर्धारित रास्ता इस प्रकार है लाल पुल से शुरू होकर, टीले वाली मस्जिद, बड़ा इमामबाड़ा, गोल दरवाज़ा, चौक बाजार, फूल वाली गली, अकबरी दरवाजा तक। समय: नित्य 7.30 बजे प्रातः से 10 बजे तक (अप्रैल से सितम्बर)8 बजे से 10.30 बजे (अक्टूबर से मार्च)


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