लखनऊ में नवाबी दौर की दो और प्रसिद्ध इमारते हैं: बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा।
आसफ़ी इमामबाड़ा (बड़ा इमामबाड़ा)
इसका निर्माण नवाब आसफ-उद-दौला ने 1784 में कराया था। वास्तुशिल्प के लिहाज़ से उस दौर की यह शानदार इमारतों में से एक है। कहते हैं इसका सेंट्रल हॉल दुनिया में सबसे बड़ा गुम्बदाकार छत वाला हॉल है। इसकी आंतरिक साज-सज्जा में सिर्फ गलियारों को छोड़ दें तो और कहीं भी लकड़ी का इस्तेमाल नहीं हुआ है। अब इमामबाड़े का इस्तेमाल शिया मुसलमान अज़ादारी के लिए करते हैं।
इसके नीचे कई भूमिगत रास्ते हैं, जिन्हें अब बंद कर दिया गया है। बाहर से आती सीढ़ियां लोगों को भूल-भुलैया तक लेकर जाती हैं। यह टेढ़े-मेढ़े रास्तों का ऐसा मायाजाल है कि लोग यहां रास्ता भटक जाते हैं। संभवतः इसी कारण पर्यटकों को गाइड के साथ ही यहां जाने की हिदायत दी जाती है। इमामबाड़ा के प्रांगण में ही है बेहद सुंदर आसिफी मस्जिद। शाही बावली यहां का एक और आकर्षण है।
छोटा इमामबाड़ा
इस इमामबाड़े को हुसैनाबाद इमामबाड़े के नाम से भी जानते हैं। यह बड़े इमामबाड़े के पश्चिम में स्थित है। इसका निर्माण नवाब मोहम्मद अली शाह (1837-42) ने कराया था। डिज़ाइन के मामले में यह ज़्यादा अलंकृत है और इसमें शानदार गुंबद और कंगूरेदार मेहराबें हैं। यहां लगे झाड़-फानूस खास बेल्जियम से मंगवाए गए थे। झाड़-फानूस के आलावा सोने की परत चढ़े फ्रेम वाले शीशे और रंगीन प्लास्टर इसकी आंतरिक साज-सज्जा में चार चांद लगाते हैं।
मोहम्मद अली शाह और उनके परिवार के अन्य सदस्यों की मज़ारें इमामबाड़े के भीतर ही हैं। इमारत के बाहरी हिस्से में सुनहरा गुंबद और उस पर की हुई महीन नक्काशी इसे मुगलिया वास्तुशिल्प में बिल्कुल अलग पहचान दिलाती है। इसे खास अवसरों पर रौशनी से नहलाया जाता है, लेकिन उससे पहले इसकी साज-सज्जा भी की जाती है।