उत्तर प्रदेश का क्षेत्रफल 2,40,928 वर्ग किमी है और यह गंगा के मध्यवर्ती मैदान के उपजाऊ भूभाग से उत्तर में हिमालय की निचली पर्वतमाला, दक्षिण में विन्ध्य पर्वतमाला तक फैला हुआ है। उत्तर प्रदेश की सीमा उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश और उत्तर में नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा हुआ है
गंगा एवं उसकी सहायक नदियों, यमुना नदी, रामगंगा नदी, गोमती नदी, घाघरा नदी और गंडक नदी को हिमालय के हिम से लगातार पानी मिलता रहता है। विंध्य श्रेणी से निकलने वाली चंबल नदी, बेतवा नदी और केन नदी यमुना नदी में मिलने से पहले राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में बहती है। विंध्य श्रेणी से ही निकलने वाली सोन नदी राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में बहती है और राज्य की सीमा से बाहर बिहार में गंगा नदी से मिलती है।
"कुछ प्रकार की घास गंगा के मैदानी क्षेत्र में पायी जाती हैं।इन औषधीय पौधों में रौवोल्फिया, चांदनी, वयेला, पोडोफाइलम, इफेक्रा आदि प्रमुख हैं।"
वनस्पति और जीव
राज्य के पूरे क्षेत्रफल का लगभग 12.8 प्रतिशत वन से आच्छादित है। हिमालयन प्रक्षेत्र और गंगा के मैदान में स्थित तराई-भाभर क्षेत्र में अधिकतर वन पाए जाते हैं। विन्ध्य क्षेत्र के वन में अधिकतर झाड़ियाँ हैं। जौनपुर, गाज़ीपुर और बलिया में कोई वन भूमि नहीं है और 31 जनपदों में वन क्षेत्र बहुत कम है।
उचाई वाले स्थानों में रोडोडेंड्रन और भोजपत्र के जंगल हैं, उसके नीचे देवदार, चीड आदि पाए जाते हैं। तराई-भाभर में साल, हल्दू, शीशम प्रचुरता से पाए जाते हैं।
विन्ध्य के जंगलों में चिरौंजी, ढाक, सागौन, महुआ और तेंदू के जंगल होते हैं। पहाड़ी क्षेत्र के जंगलों में औषधीय पौधे पाए जाते हैं, साल, चीड, देवदार और शीशम के पेड़ों से निर्माण कार्य के लिए लकड़ी और रेलवे के स्लीपर बनते हैं। चीड के पेड़ से निकले द्रव से रेसिन और तारपीन बनते हैं। शीशम की लकड़ी फर्नीचर बनाने में और खैर से कत्था बनता है। सेमल का उपयोग माचिस और प्लाईवुड उद्योग में होता है।
बबूल से अनेक प्रकार के रंग,बांस से पेपर उद्योग और तेंदू से बीडी बनायी जाती है। बेंत का उपयोग टोकरी और फर्नीचर में होता है।
विविध स्थलाकृति एवं जलवायु के कारण इस क्षेत्र का प्राणि जीवन समृद्ध है।
इस क्षेत्र में शेर, तेंदुआ, जंगली भालू, हाथी, जंगली सूअर, चीतल, हिरन, सांभर, सियार, साही, जंगली बिल्ली, खरगोश, गिलहरी, जंगली छिपकली, लोमड़ी, घड़ियाल के साथ-साथ कबूतर, गौरैया, फ़ाख्ता, जंगली बत्तख़, चील, तीतर, मैना, कोयल, बुलबुल, मोर, कठफोड़वा, नीलकंठ और बटेर पाए जाते हैं।
कुछ जीव प्रजातियाँ विशेष क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं। जैसे, हाथी तराई और पहाड़ी इलाकों में पाए जाते हैं। चिंकारा और हिरन सूखे क्षेत्रों में पाए जाते हैं। भालू और कस्तूरी मृग हिमालय क्षेत्र में पाए जाते हैं।
प्रदेश में कई वन्य जीव अभ्यारण और राष्ट्रीय पार्क हैं। इनमे कई विलुप्त हो रहे प्राणियों को फिर से बसाया गया है जिनमे बंगाल फ्लोरिकान और एक सींग वाला गेंडा प्रमुख हैं। प्रदेश के मैदानी क्षेत्रो और खेतो में भी कई तरह के पक्षी रहते हैं।
प्रदेश में दुधवा नेशनल पार्क के अतिरिक्त कई वन्य जीव और पक्षी अभ्यारण हैं। नदी और झील के किनारे कई तरह के पक्षी जैसे काली गर्दन वाला सारस , स्टोर्क और गिद्ध पाए जाते हैं।
प्रदेश में दुधवा नेशनल पार्क के अतिरिक्त कई वन्य जीव और पक्षी अभ्यारण हैं। नदी और झील के किनारे कई तरह के पक्षी जैसे काली गर्दन वाला सारस , स्टोर्क और गिद्ध पाए जाते हैं।