A-
A
A+
T
T
English Version
खोजें
Toggle navigation
हमारे बारे में
संगठनात्मक संरचना
पर्यटन नीति
पर्यटन कार्यालय
शासनादेश
बाह्य सहायता प्राप्त परियोजनाएं
योजनाएं
दस्तावेज़
विभागीय वेबसाइटें
निविदा
यूपीएसटीडीसी
विभाग का कैलेंडर
अवकाश सूची 2022
प्रगतिरत परियोजनाएं
अपनी जड़ों को खोजिए
सूचना का अधिकार
गंतव्य
प्रमुख गंतव्य
आगरा - फतेहपुर सीकरी
मथुरा - वृंदावन
लखनऊ
वाराणसी - सारनाथ
अयोध्या
कुशीनगर
श्रावस्ती
कपिलवस्तु
प्रयागराज - चित्रकूट
बरेली
झांसी - देवगढ़
मेरठ-सरधाना
पर्यटन सर्किट
बौद्ध सर्किट
बुंदेलखंड सर्किट
ब्रज सर्किट
अवध सर्किट
विंध्य-वाराणसी सर्किट
वन्यजीव पारिस्थितिकी-पर्यटन सर्किट
रामायण सर्किट
वन्यजीव अभ्यारण्य
दुधवा नेशनल पार्क
कतर्नियाघाट वन्यजीव
चंबल वन्यजीव
सूर सरोवर (कीठम) पक्षी
नवाबगंज पक्षी अभ्यारण्य
चंद्र प्रभा वन्यजीव अभ्यारण्य
सुहेलवा वन्यजीव अभ्यारण्य
पीलीभीत टाईगर रिजर्व
अन्य श्रेणी
यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त स्थल
हेरिटेज स्थल
एमआईसीई गंतव्य
धार्मिक स्थल
वन्यजीव/पारिस्थितिकी पर्यटन स्थल
छिपे हुए खजानें
वीकेंड पर्यटन स्थल
सिनेमा और पर्यटन
उत्तर प्रदेश पर्यटन की विकासशील परियोजनाएं
अनुभव करें
हेरिटेज
ताजमहल
आगरा का किला
फतेहपुर सीकरी
रूमी गेट
इमामबाड़ा
खुसरो बाग
धमेक स्तूप
औपनिवेशिक स्मारक
कला और संस्कृति
संस्कृति
कला और शिल्प
गीत-संगीत और नृत्य
साहित्य
संग्रहालय
वास्तुशिल्प
खानपान
झांसी फोर्ट शो
महोत्सव
ताज महोत्सव
दीपोत्सव
रंगोत्सव
लखनऊ महोत्सव
शिल्पोत्सव
गंगा महोत्सव
अन्य
हेरिटेज वॉक
आगरा
प्रयागराज
लखनऊ
वाराणसी
खरीदारी
फोटोग्राफी
गोरखनाथ मंदिर 360 डिग्री
ऑनलाइन बुकिंग
ऑनलाइन बुकिंग पोर्टल
यूनिट लॉगिन
एआरसी और यूपी टूर्स लॉगिन
निजी होटल, बस और फ्लाइट बुकिंग के लिए
संपर्क करें
बौद्ध सर्किट
मुख्य पृष्ठ
|
गंतव्य
|
पर्यटन सर्किट
|
बौद्ध सर्किट
बौद्ध सर्किट
कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन का काफी समय इस परिपथ में व्यतीत किया था। बुद्ध ने व्यापक रूप से यात्रा कर ज्ञान प्राप्त किया और अपने संदेशों को सुदूर में फैलाया और अंत में इस क्षेत्र में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
सर्किट में भव्य स्तूप, प्राचीन मठ, बौद्ध मंत्रों के बीच ध्यान और पूजा करना बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए अलौकिक अनुभव होता है।
बौद्ध भक्त उत्तर प्रदेश में भगवान बुद्ध के पूरे जीवन का अनुभव कर सकते हैं। ऐसा अनुभव किसी और जगह संभव नहीं है। यदि आप आत्ममंथन कर जीवन में ज्ञानार्जन करना चाहते हैं, तो यह सर्किट आप के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है।
What a devout can perceive of the entire life of Lord Buddha in Uttar Pradesh, cannot be replicated anywhere else. If you are looking for enlightenment in your life, this is the Circuit to visit.
कपिलवस्तु
यहां राजकुमार सिद्धार्थ का बाल्यकाल बीता और इस कारण इसे पवित्र माना जाता है।
इसकी पहचान वर्तमान समय में सिद्धार्थनगर जिले में पिपहरवा टाउनशिप के रूप में की जाती है।
यहां हजारों युग पहले की उस घटना का अनुभव किया जा सकता है, जब युवा राजकुमार सिद्धार्थ ने मोक्ष की तलाश में सभी सांसारिक धन और सुख का त्याग किया था।
कौशाम्बी
प्रयागराज से लगभग 60 किमी दूर इस स्थान पर बुद्ध ने कई धर्मोपदेश दिए थे।
यह बौद्धों के लिए उच्च शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह उस समय के सबसे समृद्ध शहरों में से एक माना जाता है।
खुदाई के दौरान यहां मूर्तियों, सिक्कों और टेराकोटा वस्तुओं की एक बड़ी संख्या के अलावा एक अशोक स्तंभ, एक पुराने किले और एक भव्य मठ के खंडहर का पता चला था।
सारनाथ
वाराणसी से सिर्फ 10 किमी दूर इस स्थान पर भगवान बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद अपना पहला धर्मोपदेश दिया था ।
महान धामेक स्तूप और उसके खंडहर अभी भी बुद्ध की शिक्षाओं की याद दिलाते हैं।
273-232 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित चमकदार स्तंभ बौद्ध संघ की नींव की निशानी है।
इस स्तंभ के ऊपर के शेर को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
संकिसा
मान्यता है कि स्वर्ग में अपनी मां को संबोधित करने के बाद भगवान बुद्ध ने यहां अवतरण लिया था।
यह फर्रुखाबाद जिले में काली नदी के तट पर बसंतपुर गांव के साथ जुड़ा हुआ है।
सम्राट अशोक ने इस पवित्र स्थान को चिह्नित करने के लिए यहां एक स्तंभ बनवाया था।
श्रावस्ती
बहराइच से मात्र 15 किमी दूर इस जगह कई संरक्षित स्तूप और खंडहर हैं।
प्राचीनकाल में यह कोसल साम्राज्य की राजधानी थी और यहां बुद्ध ने अपनी दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन कर उन लोगों को प्रभावित करने का प्रयास किया जो उनमें विश्वास नहीं करते थे।
ऐसा माना जाता है कि इसे पौराणिक राजा श्रावस्त द्वारा स्थापित किया गया था। यहां बुद्ध ने अपने जीवन के 27 साल गुजारे थे।
कुशीनगर
गोरखपुर से लगभग 50 किमी की दूरी पर कुशीनगर में बुद्ध ने अपनी आखिरी सांसें ली थीं।
यहां महापरिनिर्वाण मंदिर में 1876 में खुदाई के दौरान मिली बुद्ध की एक विशाल मूर्ति स्थापित है।
कुशीनगर में खुदाई से यह भी ज्ञात होता है कि यहां 11वीं सदी में भिक्षुओं का बड़ा समुदाय रहता था।
अद्भुत बौद्ध सर्किट
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Your browser does not support JavaScript!
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.
Javascipt has been disabled.