दीपोत्सव अयोध्या
भगवान राम के चौदह वर्षों के वनवास के बाद वापसी व राक्षस-राजा रावण के वध के प्रतीक स्वरूप बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है |भगवान राम के घर वापस आने आनंदातिरेक में मनाए जाने वाले इस उत्सव में अयोध्या वासियों ने राज्य में दीप जलाए थे तथा वैभव में उनका स्वागत किया था |तभी से प्रतिवर्ष प्रकाश का उत्सव जिसे दीपावली के नाम से जाना जाता है, मनाया जाता है । अयोध्या में पर्यटन विभाग दीपावली की पूर्व संध्या पर दीपोत्सव का आयोजन करता है जिसे छोटी दीवाली के नाम से जाना जाता है । दीपोत्सव के आयोजन पर, सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन किया जाता है, लाखों दिये अथवा मिट्टी के दीप जलाए जाते हैं, रामलीला का मंचन किया जाता है तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ एक महाआरती का आयोजन किया जाता है । पूरे विश्व से हजारों श्रद्धालु यहाँ आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं ।
राम नवमी मेला (अप्रैल)
अप्रैल माह में नवरात्रि के नौवें दिन राम नवमी मेले में हजारों श्रद्धालु भगवान राम का जन्म समारोह मनाने के लिए राम नवमी मेला में एकत्र होते हैं | यह उत्सव हिन्दू मास चैत्र में आता है तथा इसे हिन्दू धर्म के पाँच अति पवित्र उत्सवों में से एक माना जाता है । इस मेले का एक मुख्य आकर्षण राम-लीला का मंचन है (जिसमें भगवान राम के जीवन काल को दिखाया जाता है) जिसे नगर में व्यापक रूप से आयोजित किया जाता है | मेले हेतु मंदिरों को व्यापक रूप से सजाया जाता है ।
श्रावण झूला मेला (अगस्त)
झूला आम तौर पर हिन्दू मास श्रावण में प्रयोग किया जाता है । इस मेले में स्वर्ग के देवताओं की क्रीड़ात्मक भावनाओं को दर्शाया जाता है । यह मेला श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को मनाया जाता है । श्रद्धालु झूलों में अधिष्ठाताओं की मूर्तियां (विशेषकर श्री राम, श्री लक्ष्मण तथा माता सीता) रखते हैं अथवा मंदिरों में झूला लगाते हैं । श्रद्धालुओं द्वारा निकाली गई शोभायात्रा में अधिष्ठाताओं की मूर्तियों को मणि पर्वत भी ले जाया जाता है ।
मणि पर्वत पहुँचने के बाद मूर्तियों को वृक्षों की शाखाओं पर झूला झुलाया जाता है । बाद में अधिष्ठाताओं को वापस मंदिरों में ले आया जाता है । मेला श्रावण मास के अंत तक चलता है ।
मणि पर्वत पहुँचने के बाद मूर्तियों को वृक्षों की शाखाओं पर झूला झुलाया जाता है । बाद में अधिष्ठाताओं को वापस मंदिरों में ले आया जाता है । मेला श्रावण मास के अंत तक चलता है ।
राम लीला
रामलीला भगवान राम के जीवन का लोक नाट्य रूपान्तरण है, जो हिन्दू महाकाव्य रामायण के उल्लेखानुसार भगवान राम तथा रावण के मध्य चले दस दिन लंबे युद्ध पर समाप्त होता है । भारतीय उपमहाद्वीप से प्रारम्भ हुई यह परंपरा शारदीय नवरात्रि के शुभ अवसर पर प्रतिवर्ष लागातार 10 अथवा उससे अधिक रात्रियों तक मंचित की जाती है । यह शरदोत्सव काल के प्रारम्भ होने का प्रतीक है, जो दशहरा उत्सव के साथ प्रारम्भ होता है । आम तौर पर प्रदर्शन विजयदशमी के दिन तक समाप्त हो जाते हैं जो भगवान राम की राक्षस राजा रावण पर विजय का प्रतीक है । कलाकारों को एक शोभायात्रा के माध्यम से नगर के मेला मैदान अथवा नगर के चौक पर ले जाया जाता है जहां पर श्री राम तथा रावण के अंतिम युद्ध का मंचन किया जाता है। रावण, उसके भाई कुंभकर्ण तथा पुत्र मेघनाद के पुतलों में आग लगा दी जाती है तथा अयोध्या में भगवान राम का राज तिलक अथवा अभिषेक किया जाता है इसके साथ ही इस उत्सव की परिणिति ईश्वरीय आदेश की पूर्वावस्था में होती है |
परिक्रमाएँ
हिन्दू पूजा में परिक्रमाएँ एक अनिवार्य भाग है, यहाँ आने वाले भगवान राम के श्रद्धालु निम्नलिखित परिक्रमाओं से गुजरते हैं
अनंतग्रही परिक्रमा
यह तीन परिक्रमाओं में सबसे छोटी है तथा एक दिन में पूरी की जा सकती है । श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से सरयू नदी में आस्था की डुबकी लगा कर राम घाट, सीता कुंड, मणि पर्वत, ब्रह्म कुंड हो कर अंत में कनक भवन पहुंचते हैं।
पंचकोशी परिक्रमा
16 किमी लंबा सर्किट जो चक्रतीर्थ से प्रारम्भ होता है तथा नयाघाट, रामघाट, सरयूबाग, होलकर-का-पूरा, दशरथकुंद, जोगैना ,रानोपाली , जालपा नाला तथा महताबाग से होकर गुजरता है ।
चतुर्दशकोशी परिक्रमा
45 किमी की यात्रा अक्षय नवमी के शुभ अवसर पर की जाती है तथा इसे 1 दिन में ही पूर्ण करना होता है