• रिवर फ्रंट (घाट)

रिवर फ्रंट (घाट)

वाराणसी के भव्य घाटों का निर्माण 18वीं सदी या उससे भी पहले हुआ था। इन घाटों के ऊपरी तरफ हैं गुंबददार मंडप, मंदिर और ऊंचाई पर स्थित चबूतरे, जहां से नीचे गंगा की तरफ अनगिनत पत्थरों की सीढ़ियां जाती हैं।

मौसम के लिहाज से गंगा नदी के पानी के स्तर में आने-वाले उतार-चढ़ाव से इन घाटों का रूप-स्वरूप बदलता रहता है। छोटे-बड़े इन सैकड़ों घाटों से एक शिवलिंग का अस्तित्व भी जुड़ा हुआ है जो इन घाटों को धार्मिक स्तर पर एक अलग पहचान देता है। यह अलग बात है कि इनमें से कुछ समय के थपेड़ों को सहन न कर सके, तो कुछ अपना अस्तित्व आज भी बचाए रखे हुए हैं।

इन घाटों पर श्रद्धालुओं और यहां घूमने आने वाले पर्यटकों का तांता लगा रहता है। सुबह-सवेरे स्नान करने वाले, पूजा-अर्चना करने वाले पंडित, योग और ध्यान लगाने वाले सभी यहां देखे जा सकते हैं। हिंदू धर्मावलंबियों में गंगा को अमृतदायिनी माना गया है, जो जिंदगी में शुचिता व मोक्ष प्रदान करती है। इन घाटों पर हिंदुओं द्वारा मृत लोगों का क्रिया-कर्म भी इसी भावना के अनुरूप किया जाता है। यही वजह है कि यहां घाटों पर रात-दिन यानी चौबीसों घंटे दाह-संस्कार चलता रहता है।

सदियों से श्रद्धालुजन परिक्रमा के जरिये शहर के तीर्थस्थलों का नमन करते आ रहे हैं। परिक्रमा के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रिय है पंचतीर्थी यात्रा। यह अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदि केशव घाट, पंचगंगा घाट और अंततः मणिकर्णिका घाट पर समाप्त होती है। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुजनों के साथ एक पुजारी चलता है। वह रास्ते भर संकल्प दोहराते हुए परिक्रमा के प्रत्येक पड़ाव पर विधि-विधान से पूजा-अर्चना कराते चलता है। कई लोग नाव से शहर का भ्रमण करना पसंद करते हैं।