1851 में बना यह मंदिर भगवान रंगनाथ या रंगाजी को समर्पित है। यह मंदिर 30 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और यह दक्षिण भारतीय वास्तुकला की तर्ज पर परम्परागत गोपुरम है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार राजपूत शैली का है तथा इटालियन प्रभावित स्तंभवली है। यह मंदिर शेषनाग की शैया पर आराम करते भगवान विष्णु के इस रूप को सामने लाता है। द्रविड़ियन शैली में बने इस मंदिर का गोपुरम (प्रवेश द्वार) छह मंजिला है। इसका सोने का पत्थर जड़ा ध्वज स्तंभ 50 फीट ऊंचा है। मंदिर के प्रांगण में ही स्थित है तालाब और नयनाभिराम बगीचा। यहां प्रतिष्ठित भगवान को समर्पित सालाना पर्व जल विहार बेहद भव्य अंदाज में मनाया जाता है। यह मंदिर मार्च-अप्रैल में होने वाले ब्रह्मोत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है, आम बोलचाल की भाषा में इसे रथ के मेला के नाम से भी जाना जाता है। दस दिन तक चलने वाले इस आयोजन में भक्तगण रथ को खींचते हैं।
समय गर्मियों में : ( 8:00 प्रातः से 12:45, 4:00 सांय से 8:00 सांय)
समय सर्दियों में : ( 5:30 प्रातः से 11:00 प्रातः तथा 4:00 सांय से 7:30 सांय)