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कुंभ मेला

Sravasti

आज के आधुनिक प्रयागराज में स्थित प्रयाग का बतौर तीर्थ हिन्दुओं में एक महत्वपूर्ण स्थान है। परंपरागत तौर पर नदियों का मिलन बेहद पवित्र माना जाता है, लेकिन संगम का मिलन बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत मिलन होता है।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान विष्णु अमृत से भरा कुंभ (बर्तन) लेकर जा रहे थे कि असुरों से छीना-झपटी में अमृत की चार बूंदें गिर गई थीं। यह बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन रुपी तीर्थस्थानों में गिरीं। तीर्थ वह स्थान होता है जहां कोई भक्त इस नश्वर संसार से मोक्ष को प्राप्त होता है। ऐसे में जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरी वहां तीन-तीन साल के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है। इन तीर्थों में भी संगम को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है। संगम में हर बारह साल पर कुंभ का आयोजन होता है।

भारत में महाकुंभ धार्मिक स्तर पर बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण आयोजन है। इसमें लाखों लोग शिरकत करते हैं। महीने भर चलने वाले इस आयोजन में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए टेंट लगा कर एक छोटी सी नगरी अलग से बसाई जाती है। यहां सुख-सुविधा की सारी चीजें जुटाई जाती हैं। यह आयोजन प्रशासन, स्थानीय प्राधिकरणों और पुलिस की मदद से किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर के जंगलों, पहाड़ों और कंदराओं से साधु-संत आते हैं। कुंभयोग की गणना कर स्नान का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। स्नान के पहले मुहूर्त में नागा साधु स्नान करते हैं। इन साधुओं के शरीर पर भभूत लिपटी रहती है, बाल लंबे होते हैं और यह मृगचर्म पहनते हैं। स्नान के लिए विभिन्न नागा साधुओं के अखाड़े बेहद भव्य तरीके से जुलूस की शक्ल में संगम तट पर पहुंचते हैं। पिछला महाकुंभ 2013 में पड़ा था तो अगला कुंभ 2025 में पड़ेगा।